कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने कन्यादान करते वक्त एक माता के दुःख का बड़े ही सुंदर तरीके से वर्णन किया हैं। कवि कहते हैं कि कन्यादान करते वक्त या बेटी की विदाई करते वक्त माँ का दुःख बड़ा ही स्वाभाविक व प्रामाणिक होता हैं।
दरअसल बेटी ही माँ के सबसे निकट व उसके जीवन के सुख-दुःख में उसकी सच्ची सहेली होती हैं । अब जब वही उससे दूर जा रही है। तो माँ को कन्यादान करते वक्त ऐसा लग रहा है मानो वह अपने जीवन की सबसे अनमोल “आख़िरी पूँजी” को दान करने जा रही है।
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि ऋतुराज कहते हैं कि लड़की अभी इतनी सयानी या परिपक्व नहीं हुई हैं कि वह दुनियादारी की बातों को समझ सकें । वह अभी भी एकदम भोली भाली व मासूम ही है।उसने अपने मायके में सिर्फ सुखों और खुशियों को ही देखा है।
इसीलिए उसे जीवन में आने वाले दुख और परेशानियों के बारे में अभी कुछ पता नही है और ना ही उसे अपने दुःखों व परेशानियों को किसी के साथ बाँटना या हल करना आता हैं।
कवि ऋतुराज आगे कहते हैं कि जिस प्रकार धुंधले प्रकाश में हमें किताबों में लिखे अक्षर स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं। या हम उन अक्षरों को स्पष्ट नहीं पढ़ पाते हैं। सिर्फ अंदाजा लगाने की कोशिश करते हैं।
ठीक उसी प्रकार , उस लड़की के सामने भी अभी काल्पनिक सुखों की एक धुंधली सी तस्वीर है।उसे व्यावहारिकता का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। ससुराल में आने वाली जिम्मेदारियां , कठिन परिस्थितियों व संघर्षों के बारे में उसको अभी कुछ भी अंदाजा नहीं है। यानि उसके पास जो भी जानकारी हैं वह आधी अधूरी व अस्पष्ट हैं।
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में , माँ अपनी बेटी की विदाई के वक्त जीवन जीने की सबसे बड़ी सीख उपहार स्वरूप दे रही है।जो जीवन भर उसके काम आयेगा। माँ कहती है कि शीशे या पानी में अपनी सुंदरता का प्रतिबिम्ब देखकर ज्यादा खुश मत होना क्योंकि यह सब अस्थाई हैं।
फिर माँ अपनी बेटी को कहती है कि आग का प्रयोग सिर्फ खाना बनाने या रोटियाँ सेंकने के लिए ही करना। लेकिन अगर आग का प्रयोग जलने या जलाने के लिए करते हुए देखो तो तुरंत उसका विरोध करना। कवि इन पंक्तियों के माध्यम से उन लोगों पर कटाक्ष करना चाहते हैं जो दहेज के लालच में आकर अपनी बहुओं को आग के हवाले करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं।
कवि ऋतुराज आगे कहते हैं कि वस्त्र और आभूषण महिलाओं को बहुत आकर्षित करते हैं। लेकिन माँ , वस्त्र और आभूषणों को सौंदर्य बढ़ाने वाली वस्तु न मानकर , इनको महिलाओं के लिए एक बंधन मानती है। इसीलिए वो अपनी बेटी से कहती है कि वस्त्र और आभूषणों के लालच में कभी मत पड़ना क्योंकि ये सब महिलाओं के लिए किसी बंधन से कम नहीं हैं।
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
भावार्थ
उपरोक्त पंक्तियों में माँ अपनी बेटी को अबला व कमजोर नारी की जगह एक सशक्त व मजबूत इंसान बनने को कहती हैं । ताकि वह अपनी सुरक्षा व अधिकारों के प्रति जागरूक रह कर , हर विपरीत परिस्थिति का पूरी दृढ़ता के साथ सामना कर सके। क्योंकि लोग महिलाओं को कमजोर समझ कर उनका शोषण व अत्याचार करते हैं।
इसीलिए माँ कहती हैं कि अपने स्त्रीत्व के स्वाभाविक गुणों को हमेशा बरकरार रखना। उनको कभी मत छोड़ना लेकिन कभी भी कमजोर व असहाय मत बनना। अपने खिलाफ होने वाले हर अन्याय और अत्याचार का हमेशा डटकर सामना करना , उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना।
कवि परिचय
ऋतुराज
इनका जन्म सन 1940 में भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविधालय, जयपुर से उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए किया। चालीस वर्षो तक अंग्रेजी साहित्य के अध्यापन के बाद अब वे सेवानिवृत्ति लेकर जयपुर में रहते हैं। उनकी कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ है और वे अपने आसपास रोजमर्रा में घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडंबनाओं पर निग़ाह डालते हैं, इसलिए उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक जीवन से जुडी हुई है।
प्रमुख कार्य
कविता संग्रह - एक मरणधर्मा और अन्य, पुल और पानी, सुरत निरत और लीला मुखारविंद।
पुरस्कार - सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान, बिहारी पुरस्कार।
कठिन शब्दों के अर्थ
• प्रामाणिक - प्रमाणों से सिद्ध
• सयानी - बड़ी
• आभास - अहसास
• बाँचना - पढ़ना
• लयबद्ध - सुर-ताल
• रीझना - मन ही मन प्रसन्न होना
• आभूषण - गहना
• शाब्दिक - शब्दों का
• भ्रम - धोखा
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